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Tuesday, September 8, 2020

भारतीय राजव्यवस्था (part 6), राज्य विधायिका, पंचायती राज, प्रमुख संविधान संशोधन

भारतीय राजव्यवस्था

भारतीय राजव्यवस्था (part 6),  राज्य विधायिका, पंचायती राज, प्रमुख संविधान संशोधन


12. राज्य विधायिका 

विधानपरिषद्

• विधानपरिषद् , राज्य विधानमण्डल का उच्च सदन होता है । वर्तमान में केवल छः राज्यों ( उत्तर प्रदेश , कर्नाटक , जम्मू एवं कश्मीर , महाराष्ट्र , बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश ) में विधानपरिषदें विद्यमान हैं । 

• विधानपरिषद् का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु - सीमा 30 वर्ष है । 

• विधानपरिषद् के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है , किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक - तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते है तथा उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हैं । विधानपरिषद् अपने सदस्यों में से दो को क्रमशः सभापति एवं उपसभापति चुनती है ।


विधानसभा 

विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है । विशेष परिस्थिति में राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह इससे पूर्व भी उसको विघटित कर सकता है । 

• विधानसभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु - सीमा 25 वर्ष है । 

• प्रत्येक राज्य की विधानसभा में कम - से - कम 60 और अधिक - से - अधिक 500 सदस्य होते हैं । अपवाद अरुणाचल प्रदेश ( 40 ) , गोवा ( 40 ) , मिजोरम ( 40 ) , सिक्किम ( 32 ) । विधानसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार प्रणाली द्वारा होता है । 

केन्द्र - राज्य सम्बन्ध 

भारत में केन्द्र - राज्य सम्बन्ध संघवाद की ओर उन्मुख है और संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा के संविधान से लिया गया है । भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केन्द्र एवं राज्य की शक्तियों के बँटवारे से सम्बन्धित तीन सूचियाँ दी गई हैं- ( i ) संघ सूची , ( ii ) राज्य सूची और ( iii ) समवर्ती सूची ।

 

 

केन्द्र - राज्य सम्बन्धों पर सरकारिया आयोग का गठन - जून , 1983 में किया गया , इसने अपनी रिपोर्ट जनवरी , 1988 में सौंपी एम एम पुंछी आयोग का गठन अप्रैल , 2007 में किया गया , जिसने 2010 में अपनी रिपोर्ट सौंपी

 

 अन्तर्राज्यीय परिषद् 

• संविधान के अनुच्छेद 263 के अन्तर्गत राष्ट्रपति द्वारा लोकहित में अन्तर्राज्यीय परिषद का गठन किया जा सकता है । इस परिषद् के प्रमुख कार्य हैं 

• राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों की जाँच करना तथा उस सम्बन्ध में आवश्यक सुझाव देना । 

• अन्तर्राज्यीय विषयों से सम्बन्धित नीतियों एवं कार्यावाहियों में सुसमन्वय हेतु संस्तुति करना । 

• केन्द्र एवं एक या एक से अधिक राज्यों के सामान्य हितों से सम्बन्धित मामलों की जाँच करना तथा विचार - विमर्श करना ।

• वर्ष 1990 में राष्ट्रपति द्वारा ' अन्तर्राज्यीय परिषद् का गठन किया गया । 

अन्तर्राज्यीय परिषद् संघटन 

• प्रधानमन्त्री – अध्यक्ष 

• राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के मुख्यमन्त्री एवं प्रशासक 

• केन्द्रीय कैबिनेट के छः मन्त्री

क्षेत्रीय परिषद् 

भारतीय संविधान में क्षेत्रीय परिषदों का उल्लेख नहीं किया गया है । इसकी स्थापना राज्य पुनर्गठन अधिनियम , 1956 के तहत की गई ।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम , 1956 के द्वारा भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र को पाँच क्षेत्रों में बाँटा गया है तथा प्रत्येक क्षेत्र के सामान्य हितों के सम्बन्ध में सलाह देने हेतु क्षेत्रीय परिषदें बनाई गई हैं । ये परिषदें हैं

क्र.सं.

 

परिषद्

मुख्यालय

सम्मिलित राज्य क्षेत्र

1.

उत्तरी क्षेत्रीय परिषद्

नई दिल्ली

दिल्ली, पंजाब , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , राजस्थान , , चण्डीगढ़ तथा जम्मू - कश्मीर

2.

दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद्

चेन्नई

केरल , तमिलनाडु , परिषद् कर्नाटक , आन्ध्र प्रदेश तथा पुदुचेरी

3.

पूर्वी क्षेत्रीय परिषद्

कोलकाता

बिहार , ओडिशा , परिषद् पश्चिम बंग तथा झारखण्ड

4.

पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद्

मुम्बई

महाराष्ट्र , गोवा , परिषद् गुजरात दमन और दीव तथा दादर एवं नागर हवेली

5.

मध्यवर्ती क्षेत्रीय परिषद्

इलाहाबाद

उत्तर प्रदेश , मध्य परिषद् प्रदेश , उत्तराखण्ड तथा छत्तीसगढ़

 नीति आयोग 

64 वर्ष पुराने ' योजना आयोग ' को नया रूप तथा नया नाम देते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इण्डिया ( नीति ) आयोग के गठन की घोषणा 1 जनवरी , 2015 को की गई । यह नया आयोग केन्द्र तथा राज्य सरकारों के लिए ' थिंक टैंक ' का कार्य करेगा । 

इसमें सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उप - राज्यपाल / प्रशासकों को सदस्यता दी गई है । यह आयोग ' राष्ट्रीय विकास का एजेण्डा ' तैयार करेगा । 

नीति आयोग , जन केन्द्रित , सक्रिय तथा सहभागी विकास एजेण्डा के सिद्धान्त पर आधारित संस्था होगी , जिसमें सहकारी संघवाद को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है । 

नीति आयोग का स्वरूप नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करेंगे , इसके अतिरिक्त एक उपाध्यक्ष की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है । अरविन्द पनगड़िया को इसका प्रथम उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है ।

इसकी संरचना निम्न प्रकार बनाई गई है

अध्यक्ष

प्रधानमन्त्री

गवर्निंग काउन्सिल

सभी मुख्यमन्त्री , केन्द्र शासित प्रदेशों के राज्यपाल / प्रशासक

विशेष आमन्त्रित सदस्य

विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ ( प्रधानमन्त्री द्वारा नामित )

उपाध्यक्ष

प्रधानमन्त्री द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

पूर्णकालिक सदस्य

इनकी संख्या पाँच होगी

अंशकालिक सदस्य

दो पदेन सदस्य तथा विश्वविद्यालयों के शिक्षक क्रम के अनुसार

पदेन सदस्य

चार केन्द्रीय मन्त्री

सीईओ

केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी , जिसे निश्चित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाएगा


13. पंचायती राज 

• पंचायती राज का उद्देश्य लोगों के संगठनों को वास्तविक शक्तियाँ सौंपकर लोकतन्त्र को ग्राम्य स्तर पर ले जाना है । इसका शुभारम्भ 2 अक्टूबर , 1959 को नागौर , राजस्थान से हुआ । बाद में इसे आन्ध्र प्रदेश में लागू किया गया । 

 अनुच्छेद 40 के अनुसार संवैधानिक व्यवस्थाओं को आकार प्रदान करने के लिए , बलवन्त राय मेहता समिति ने ग्रामीण स्तर पर सबल । लोकतान्त्रिक संस्थाओं के प्रवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए शक्तियों के लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की सिफारिश की थी । 

• पंचायती राज का लक्ष्य लोगों को विकास और योजनाओं से जोड़ना है , ताकि अफसरशाही पर निर्भरता को कम किया जा सके । 

• समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को लागू करने की सिफारिश की थी , जो निम्न प्रकार हैं 
1. ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत । 
2. ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति , जिसके सदस्य ब्लॉक के अन्तर्गत आने वाले गाँवों की पंचायतों द्वारा निर्वाचित किए गए हों । 
3. जिला स्तर पर जिला परिषदें । 

 अशोक मेहता समिति ने द्विस्तरीय पंचायती राज प्रणाली तथा एल एम सिंधवी समिति ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने की सिफरिश की थी ।

ग्रामसभा 

• यद्यपि यह पंचायती राज प्रणाली का कोई स्तर ( टीयर ) नहीं है फिर भी लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण को पूर्ण बनाने में इसकी निर्णायक भूमिका है । 

• यह एक सामान्य निकाय है , जिसके सभी मतदाता , ग्राम पंचायत के न्याय - क्षेत्र के भीतर ही निवास करते हैं। 

 ग्राम पंचायत 

• ग्राम पंचायत , पंचायती राज का पहला स्तर है । 

 ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा गुप्त मतदान करके ही सभी सदस्यों का चुनाव होता है । 

पंचायत समिति 

 पंचायती राज में पंचायत समिति को मध्य स्तर कहा जाता है । इसे जनपद पंचायत . तालुका पंचायत और अंचल पंचायत आदि भी कहा जाता है । 

 इसमें शामिल हैं-------

1. पंचायतों के सरपंच ( पदेन ) , 
2. स्थानीय सांसद , विधायक और विधानपरिषद् के सदस्य ( मताधिकार सहित या मताधिकार रहित ) 
3. नारी प्रतिनिधि , अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जन - जातियाँ जो सहयोजित हैं और जिनकी सदस्यता आरक्षित है और
4. नगरपालिकाओं और सहकारी समितियों आदि का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति ।

 इस निकाय का अध्यक्ष एक गैर - सरकारी व्यक्ति होता है , जिसका चुनाव समिति के सदस्यों द्वारा होता है ।

जिला परिषद्

• पंचायती राज प्रणाली का सबसे ऊपर का स्तर जिला परिषद् द्वारा निर्मित है । 

 यह निचले स्तर पर ग्रामीण स्थानीय सरकारी निकायों के बीच एक कड़ी का काम करती है , जैसे - पंचायत समिति और राज्य विधानमण्डल व संसद । 

 एक जिलापरिषद में सामान्यतः जिले की पंचायत समितियों के अध्यक्ष शामिल होते हैं , जिले से सम्बन्धित सांसद और विधायक । 

• सहकारी समितियों के प्रतिनिधि । 

अनुसूचित जातियों , जनजातियों और कुछ सहयोजित सदस्यों के प्रतिनिधियों की एक विशेष संख्या । सामान्यतः परिषद के सदस्यों द्वारा ही इसके अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है । 

 जिला विकास अधिकारी ही जिला परिषद् का मुख्य कार्यकारी अधिकारी या सचिव होता है और विभिन्न प्रशासनिक और विकास विभाग के जिला अधिकारी इसके मतदान में हिस्सा न लेने वाले सदस्य होते हैं ।

 कई राज्यों में जिला अधिकारी ( कलेक्टर ) भी एक मतदान न करने वाले सदस्य के रूप में परिषद् से सम्बद्ध होता है । , 

 जिला परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष है । , 

 ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 % सीटें आरक्षित हैं । 

निर्वाचन आयोग 
( अनुच्छेद 324-329 ) 

 निर्वाचन आयोग का गठन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों को मिलाकर किया जाता है , जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है ।

 मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु , जो भी पहले हो तक होता है । अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष जो भी पहले हो तक रहता है । 

 प्रारम्भ में चुनाव आयोग एक सदस्यीय आयोग था , परन्तु अक्टूबर , 1993 में इसे तीन सदस्यीय आयोग बना दिया गया । वर्तमान में यह तीन सदस्यीय है । 

निर्वाचन आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं 

 चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन , मतदाता सूचियों को तैयार करवाना , विभिन्न राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना तथा उनके लिए आचार संहिता तैयार करवाना । राजनीतिक दलों को  आरक्षित चुनाव चिह्न प्रदान करना तथा चुनाव करवाना ।

सुकुमार सेन देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे हरिशंकर ब्रह्मा वर्तमान में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त हैं

 वित्त आयोग 

• संविधान के अनुच्छेद 280 के अन्तर्गत राष्ट्रपति द्वारा वित्त आयोग का गठन किया जाता है । 

• वित्त आयोग में राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्य नियुक्त किए जाते हैं । 

• राज्य वित्त आयोग का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 ( 1 ) के अन्तर्गत किया जाता है । \

• वर्तमान में 14 वें वित्त आयोग का गठन किया गया है । इसके अध्यक्ष वाई वी रेड्डी हैं ।

संघ लोक सेवा आयोग ( यूपीएससी ) 

संघ लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष और 8 अन्य सदस्य शामिल होते हैं । इन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और अपनी नियुक्ति की तारीख से लेकर 6 वर्ष तक तथा अधिकतम 65 वर्ष तक अपने पद पर बने रहते हैं ।

यूपीएससी के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं 

• संघ की सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का प्रबन्ध करना । 

• यदि दो या दो से अधिक राज्य निवेदन करते हैं , तो उन राज्यों को उन सेवाओं हेतु संयुक्त भर्ती की योजनाओं को बनाने व संचालित करने में सहायता करना । 

• संघ सरकार को सिविल सेवाओं या सिविल पदों की भर्ती की विधियों से सम्बन्धित सभी मामलों पर परामर्श देना ।

 राजभाषा 

• संविधान के भाग -17 के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है । 

• संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार 22 भाषाओं को राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है । 

• वर्ष 1955 में ' बी जी खेर ' की अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया गया था ।

लोकपाल एवं लोकायुक्त 

• ओम्बुड्समैन संस्था का गठन पहली बार 1809 ई . में स्वीडन में किया गया था । 

• प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश पर पहली बार भारत में लोकपाल एवं लोकायुक्त की नियुक्ति की व्यवस्था की गई । 

• लोकपाल से सम्बन्धित प्रस्ताव भारत में पहली बार 1969 में आया था । इससे सम्बन्धित विधेयक कई बार संसद में प्रस्तुत हो चुके हैं । 

• 2001 के लोकपाल सम्बन्धी विधेयक में यह प्रस्ताव किया गया कि लोकपाल एक त्रिस्तरीय संस्था होगी एवं प्रधानमन्त्री , केन्द्रीय मन्त्री , सांसद आदि इसके कार्यक्षेत्र में आएँगे और इनके सम्बन्ध में भ्रष्टाचार , पद के दुरुपयोग आदि की जाँच लोकपाल करेगा । 

• दिसम्बर 2013 में राज्यसभा एवं लोकसभा द्वारा बिल को पास करने के पश्चात् राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज . दिया गया तथा 1 जनवरी , 2014 को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किए । 

• लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्यों का प्रावधान है । इनमें से 50 % सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से लिए जाने हैं ।

 लोकपाल चयन समिति

लोकपाल चयन समिति में 5 सदस्य होंगे , जिनकी अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करेगा इसके अतिरिक्त लोकसभाध्यक्ष , नेता प्रतिपक्ष , मुख्य न्यायाधीश अथवा उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का कार्यरत न्यायाधीश सदस्य रूप में होंगे लोकसभा चयन समिति के पहले 4 सदस्यों द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित प्रख्यात विधिवेत्ता पाँचवाँ सदस्य होगा

 सूचना का अधिकार अधिनियम , 2005 

• प्रशासन की पारदर्शिता तथा लोगों के प्रति जवाबदेह होने की दिशा में सूचना का अधिकार ( आर टी आई ) कानून , 2005 एक क्रान्तिकारी कदम है । 

• आर टी आई एक्ट को संसद द्वारा 15 जून , 2005 को पारित किया गया । सूचना का अधिकार विधेयक 12 अक्टूबर , 2005 को प्रभावी हुआ । 

ई - शासन ( e - Governance ) 

इसके अन्तर्गत सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा शासन - प्रशासन की पहुँच जन - जन तक सुनिश्चित करना शामिल है । इसमें सूचना प्रौद्योगिकी का बहु - संजाल सरकार से जनता तक ( G2C ) सरकार से व्यवसाय तक ( G2B ) , सरकार से सरकार तक , सरकार से सरकार तक ( G2G ) तथा नागरिक से नागरिक तक ( C2C ) सुनिश्चित करना है । 

उद्देश्य 

सरकार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता बढ़ाना । सरकार के निर्णयों में सुधार । सरकार में , लोगों के विश्वास में वृद्धि करना।

उपयोगिता 

ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग भी देश - विदेश के घटनाक्रम से भलीभांति परिचित हो सकेंगे । इसके माध्यम से योजनाओं तथा दस्तावेजों का सुव्यवस्थित रख - रखाव सम्भव हो सकेगा । सूचनाएँ सीधे सम्बद्ध व्यक्ति तक पहुंच सकेंगी ।

समस्याएँ 

आम नागरिकों में जानकारी का अभाव । सरकारी स्तर पर मितव्ययिता का अभाव । सूचना क्रान्ति का ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच का अभाव । 

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( EVM )

• ईवीएम का प्रथम प्रयोग 1998 में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में ( राजस्थान , मध्य प्रदेश , दिल्ली ) पहली बार हुआ । 

• गोवा वह प्रथम राज्य है , जहाँ सम्पूर्ण क्षेत्र में पहली बार ई वी एम से चुनाव सम्पन्न हुए । 

वीवीपीएटी के जरिए मतदाताओं को फीडबैक 

• मतदाता पावती रसीद यानि वोटर वेरिफायड पेपर ऑडिट ट्रायल ( वीवीपीएटी ) मतपत्र रहित मतदान प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए मतदाताओं को फीडबैक देने का तरीका है । इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की स्वतन्त्र पुष्टि है । यह व्यवस्था मतदाता को इस बात की पुष्टि करने f की अनुमति देती है कि उसकी इच्छानुसार मत पड़ा है या नहीं । 

नोटा ( NOTA ) का अधिकार 

• लोकतन्त्र में मतदाताओं को यह अधिकार होना चाहिए कि यदि वे क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से नहीं हैं तो उन्हें इस बात की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होनी चाहिए कि वे किसी भी प्रत्याशी का चुनाव न करें । 

• उच्चतम न्यायालय के अनुसार नोटा के विकल्प के माध्यम से मतदाताओं को यह अधिकार मिलेगा कि वे राजनीतिक दलों को स्वच्छ व ईमानदार छवि वाले प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारने के लिए विवश करें ।


14. प्रमुख संविधान संशोधन

 

प्रथम ( 1951 )

राज्यों के भूमि सुधार कानूनों को नवीं अनुसूची में रखकर न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया गया

सातवाँ ( 1956 )

भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया

बारहवाँ ( 1962 )

पुर्तगाली आधिपत्य वाले केन्द्रशासित प्रदेश गोवा , दमन तथा दीव को भारत का अंग बना लिया गया

तेरहवाँ ( 1962 )

नागालैण्ड को भारत का नया राज्य घोषित किया गया , कुछ विशेष उपबन्ध के साथ

चौदहवाँ ( 1962 )

पुदुचेरी की भारत का अंग नाया गया

छब्बीसवाँ ( 1971 )

राजाओं की उपाधियाँ प्रिवीपर्स तथा विशेषाधिकार समाप्त

इकत्तीसवाँ ( 1973 )

लोकसभा की सदस्य संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई है

छत्तीसवाँ ( 1975 )

सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया

उन्तालीसवाँ ( 1975 )

राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के निर्वाचन को चुनौती नहीं दी जा सकती

बयालीसवाँ ( 1976 )

प्रस्तावना में पन्थनिरपेक्ष , समाजवादी और अखण्डता शब्द जोड़े गए मौलिक कर्तव्यों का समावेश

चवालीसवाँ ( 1978 )

सम्पत्ति के मौलिक अधिकार को समाप्त किया । सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में और मन्त्रिमण्डल की लिखित सलाह पर आपात की घोषणा राष्ट्रपति करेगा

 

अट्ठावनवाँ

(1987)

भारतीय संविधान का हिन्दी में प्राधिकृत रूप के लिए प्रावधान

इकसठवाँ ( 1989 )

मताधिकार की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई

उनहत्तरवाँ ( 1991 )

दिल्ली का नाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र किया गया तथा विधानसभा की स्थापना की गई

सत्तरवाँ (1992)

दिल्ली विधानसभा तथा पुदुचेरी विधान सभा को राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने का अधिकार प्रदान किया गया

इकहत्तरवाँ ( 1992 )

आठवीं अनुसूची में कोंकणी , मणिपुरी और नेपाली भाषा को सम्मिलित किया गया

तिहत्तरवाँ ( 1992-93 )

पंचायती राज

चौहत्तरवाँ ( 1992 )

नगर पालिका व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया , संविधान में बारहवीं सूची जोड़ी गई

पिचासीवाँ ( 2002 )

सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति / जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था

छियासीवाँ ( 2002 )

राज्य द्वारा 6 से 14 साल तक के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान

 

बयानवेवाँ ( 2003 )

संविधान की आठवीं अनुसूची में बोडो , डोगरी , मैथिली और संथाली भाषा का समावेश

तिरानवेवाँ ( 2006 )

निजी एवं बिना सरकारी अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश हेतु सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण

चौरानवेवाँ ( 2006 )

अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए एक मन्त्री का प्रावधान मध्य प्रदेश एवं ओडिशा के साथ - साथ छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड में भी किया गया

पंचानवेवाँ ( 2010 )

अनुसूचित जाति / जनजाति के लिए आरक्षण की अवधि लोकसभा / राज्य की विधानसभा के लिए 60 वर्ष से बढ़ाकर 70 वर्ष ( 10 वर्ष के लिए )

छियानवेवाँ ( 2011 )

" उड़िया ' भाषा को " ओड़िया ' ' में परिवर्तित किया गया

सत्तानवेवाँ ( 2012 )

अनुच्छेद 19 ( 1 ) ( C ) में " सहकारी समितियाँ ' शब्द को जोड़ा गया।

अठानवेवाँ ( 2012 )

हैदराबाद - कर्नाटक क्षेत्र को विकसित करने हेतु प्रभावी कदम उठाने के लिए कर्नाटक के राज्यपाल को सशक्त करना , कर्नाटक के राज्यपाल को विकसित करने के लिए

 

 

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