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Monday, August 31, 2020

भारतीय राजव्यवस्था (part 2)

भारतीय राजव्यवस्था




5. मौलिक अधिकार

• मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं , जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अनिवार्य हैं और जाति , रंग , धर्म , नस्ल और लिंग का लिहाज किए बिना इनका उपयोग सभी के द्वारा किया जाता है । 

• संविधान का भाग 3 ( अनुच्छेद 12 से 35 ) मौलिक अधिकारों की व्याख्या करता है , भारतीय नागरिकों की अनिवार्य स्वतन्त्रता के मैग्नाकार्टा का निर्माण करता है ।

• ये अधिकार न्यायसंगत हैं और आवश्यक हो तो न्यायालय द्वारा इन्हें लागू भी किया जा सकता है । 

• मूलतः ये सात थे , लेकिन 1978 में 44 वें संविधान संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को हटा दिया गया । 


भारतीय संविधान निम्नलिखित मौलिक अधिकारों की गारण्टी देता है 

समानता का अधिकार 
( अनुच्छेद 14-18 ) 

• कानून के समक्ष समानता ; ( अनुच्छेद 14 ) 
• धर्म , जाति , लिंग या जन्म स्थान के आधार पर राज्य द्वारा भेदभाव करने का निषेध ; ( अनुच्छेद 15 ) सार्वजनिक नियुक्तियों के मामलों के अवसरों की समानता ; ( अनुच्छेद 16 ) 
• अस्पृश्यता का उन्मूलन ( अनुच्छेद 17 ) 
• सैनिक और शैक्षिक उपाधियों के अलावा अन्य उपाधियों का अन्त ; ( अनुच्छेद 18 )

स्वतन्त्रता का अधिका
 ( अनुच्छेद 19-22 )

• वाक् - स्वातन्त्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण ( वाक - स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति स्वातन्त्र्य का शान्तिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का , संगम या संघ बनाने का , भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का और उसके किसी भाग में निवास करने और बस जाने का ) ( अनुच्छेद 19 ) 

• अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण ( अनुच्छेद 20 ) 

• प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण ( अनुच्छेद 21 ) 

• शिक्षा का अधिकार ( अनुच्छेद 21 क ) 

• बन्दीकरण की अवस्था में संरक्षण ( अनुच्छेद 22 ) 

अनुच्छेद 21 ( क ) 6 से 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है । यह अनुच्छेद 86 वें संविधान संशोधन द्वारा वर्ष 2002 में जोड़ा गया । 

शोषण के विरुद्ध अधिकार 
( अनुच्छेद 23-24 ) 

• मानव के व्यापार और बन्धुआ मजदूरी का निषेध । ( अनुच्छेद 23 ) 

14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को उद्योगों , खानों और जोखिम भरे कार्यों में लगाने का निषेध । ( अनुच्छेद 24 ) 

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
( अनुच्छेद 25-28 ) 

• अन्तःकरण की स्वतन्त्रता और धर्म को प्रदर्शित करने , आचरण और उसका प्रचार करने का अधिकार । ( अनुच्छेद 25 ) 

• धार्मिक क्रियाकलापों के प्रबन्धन की स्वतन्त्रता । ( अनुच्छेद 26 ) 

• किसी धर्म विशेष के बढ़ावे के लिए चन्दा देने या न देने की स्वतन्त्रता । ( अनुच्छेद 27 ) 

• शिक्षण संस्थाओं में पूजा के धार्मिक अनुदेशों से उपस्थिति की मुक्ति । ( अनुच्छेद 28 )

संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार 
( अनुच्छेद 29-30 ) 

• अल्पसंख्यकों की भाषा , लिपि या संस्कृति की रक्षा । ( अनुच्छेद 29 ) 

• अल्पसंख्यकों द्वारा शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार तथा राज्य द्वारा स्थापित या राज्य कोष द्वारा सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्था में प्रवेश पाने पर मनाही का निषेध । ( अनुच्छेद 30 )

संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 ) 

अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उपरोक्त अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायिक रिटों का प्रावधान है , जो निम्न हैं - 
  
  बन्दी प्रत्यक्षीकरण  जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बन्दी बनाया जाता है , तो सर्वोच्च न्यायालय उस बन्दी  बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बन्दी बनाए गए व्यक्ति को 24 घण्टे के भीतर न्यायालय के समक्ष पेश करे । यह आपराधिक जुर्म के मामलों में जारी नहीं किया जा सकता । 
  परमादेश  यह उस समय जारी किया जाता है , जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है । 
  प्रतिषेध  यह निचली अदालत को ऐसा कार्य करने से रोकता है , जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है । 
  अधिकार - पृच्छा  यह एक व्यक्ति को एक जन कार्यालय में काम करने से मना करता है , जिसका उसे अधिकार   नहीं है । 
  उत्प्रेषण  यह तभी जारी किया जाता है जब एक अदालत या न्यायालय अपने न्याय क्षेत्र से बाहर कार्य करता है । यह निषेध ' से अलग है और यह कार्य सम्पादित होने के बाद ही जारी किया जाता है । 

डॉ . भीमराव अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 ( संवैधानिक उपचारों का अधिकार ) को संविधान की आत्मा एवं हृदय बताया ।

मूल अधिकारों के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय के निर्णय 

• शंकरी प्रसाद केस , 1952 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद मूल अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है । 

• गोलकनाथ केस , 1969 के उच्चतम न्यायालय ने अपने पिछले निर्णय को पलटते हुए निर्णय दिया कि मूल अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता । 

• केशवानन्द भारती केस , 1973 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि संसद मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती है , किन्तु इससे संविधान के मूल ढाँचे में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए 


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